Land Rule : खेती वाली जमीन को लेकर अब देशभर में नए नियम लागू किए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि कौन-सी जमीन की बिक्री पर टैक्स देना होगा और किस स्थिति में टैक्स से छूट मिल सकती है। सरकार की ओर से जमीन की बिक्री पर टैक्स को लेकर पारदर्शिता बढ़ाने की कोशिश की जा रही है ताकि किसान, जमीन मालिक और निवेशक सभी को एक तय नीति के अनुसार योजना बनाने में आसानी हो सके।
शहरी और ग्रामीण जमीन में अंतर को समझना जरूरी
किसी भी कृषि जमीन पर टैक्स लगेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह जमीन शहरी क्षेत्र में आती है या ग्रामीण क्षेत्र में। यदि जमीन किसी म्युनिसिपल बॉडी या नगर निगम क्षेत्र की सीमा के भीतर आती है या फिर ऐसे क्षेत्र से कुछ किलोमीटर की सीमा में है, जिसे शहरी विस्तार माना गया है, तो उस पर टैक्स लग सकता है। वहीं अगर जमीन पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र में आती है और वहां पर खेती की जाती रही है, तो उसकी बिक्री पर आयकर विभाग टैक्स नहीं वसूलता।
खेती योग्य जमीन की बिक्री और आयकर कानून
इनकम टैक्स एक्ट में यह साफ किया गया है कि यदि कृषि भूमि किसी शहरी क्षेत्र में स्थित नहीं है, तो उसे कैपिटल एसेट नहीं माना जाएगा। इस कारण उसकी बिक्री पर कोई पूंजीगत लाभ कर यानी कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगाया जाता। लेकिन यदि वही कृषि भूमि शहरी क्षेत्र में है या सरकार की परिभाषा के अनुसार शहरी मानी जाती है, तो उसकी बिक्री पर कैपिटल गेन टैक्स लग सकता है। यह टैक्स इस बात पर निर्भर करता है कि आपने जमीन कितने सालों तक अपने पास रखी थी।
शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की गणना
अगर जमीन को दो साल से कम समय तक अपने पास रखा गया है और फिर बेचा गया है, तो उस पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होगा, जो कि आपकी वर्तमान आयकर स्लैब के अनुसार लगाया जाएगा। वहीं अगर आप ने जमीन दो साल या उससे अधिक समय तक रखी है, तो उस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा, जिसकी दर 20 प्रतिशत होती है, और उसमें इंडेक्सेशन बेनिफिट भी लिया जा सकता है जिससे टैक्स की राशि घटाई जा सकती है।
टैक्स बचाने के विकल्प
सरकार ने कुछ ऐसे प्रावधान भी बनाए हैं जिनकी मदद से जमीन की बिक्री पर टैक्स से छूट ली जा सकती है। यदि आपने अपनी शहरी कृषि भूमि बेची है और उस पैसे से दो साल के भीतर दूसरी कृषि भूमि खरीदी है, तो आप सेक्शन 54B के तहत टैक्स से छूट का दावा कर सकते हैं। यह छूट तभी मिलेगी जब पिछली भूमि दो साल से अधिक समय तक कृषि कार्य में उपयोग की जा रही हो और नई भूमि भी कृषि प्रयोजन के लिए ही खरीदी जाए। इसके अलावा कुछ मामलों में पूंजीगत लाभ को विशिष्ट सरकारी बांड में निवेश करके भी छूट प्राप्त की जा सकती है।
नकद लेनदेन से बचना जरूरी
हाल ही में सरकार ने नकद लेन-देन को लेकर भी निगरानी तेज कर दी है। यदि कोई व्यक्ति खेती योग्य जमीन की बिक्री या खरीदारी में बड़ी राशि नकद लेता है या देता है, तो उस पर भी आयकर विभाग की नजर जा सकती है। अब ऐसे मामलों में जुर्माना, पूछताछ और टैक्स अधिभार लगाया जा सकता है। इसलिए हर लेन-देन बैंक के माध्यम से ही करना उचित है ताकि भविष्य में किसी भी जांच में परेशानी का सामना न करना पड़े।
आईटीआर में भूमि बिक्री का उल्लेख क्यों जरूरी है
चाहे आपकी कृषि भूमि ग्रामीण क्षेत्र में हो या शहरी, चाहे उस पर टैक्स लगता हो या नहीं, उसकी बिक्री को आयकर रिटर्न में दिखाना जरूरी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और भविष्य में जब कभी आप लोन या कोई बड़ा वित्तीय लेनदेन करें, तो आपकी आय और संपत्ति का सही रिकॉर्ड बना रहे। ग्रामीण जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि को आप Schedule EI में दिखा सकते हैं जबकि शहरी जमीन की बिक्री Schedule CG में दिखाई जाती है।
सरकार की सख्ती और निगरानी
आज सरकार कृषि भूमि के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्ती बरत रही है। बहुत से लोग अब तक इस भ्रम में थे कि कृषि भूमि पर टैक्स नहीं लगता, और उसी का लाभ उठाकर बड़ी-बड़ी डील्स को बिना कर अदा किए पूरा किया जाता था। लेकिन अब आयकर विभाग के पास डिजिटल माध्यम से जमीन के दस्तावेज, बिकी हुई संपत्ति की जानकारी, रजिस्ट्री डाटा और पेमेंट ट्रेल सभी का रिकॉर्ड आ जाता है, जिससे टैक्स चोरी की गुंजाइश काफी कम हो गई है।
बिक्री से पहले मूल्यांकन और योजना बनाना जरूरी
यदि आप अपनी कोई कृषि भूमि बेचने की योजना बना रहे हैं, तो यह जरूरी है कि आप पहले उसकी प्रकृति, उसकी स्थिति और पिछले उपयोग की जानकारी का मूल्यांकन कर लें। साथ ही यह भी तय करें कि उस भूमि से मिलने वाली राशि का आप क्या उपयोग करने जा रहे हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप टैक्स से छूट पाने वाले प्रावधानों का सही तरीके से लाभ ले सकें। टैक्स सलाहकार से राय लेना और जरूरी दस्तावेज पहले ही तैयार कर लेना भविष्य में बड़ी राहत बन सकता है।